Places of Worship Act, 1991: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने समावेशी समाज की वकालत करते हुए मंदिर-मस्जिद के नाम पर उठ रहे नए विवादों पर नाराजगी जाहिर की है. हाल के दिनों में मंदिरों का पता लगाने के लिए मस्जिदों के सर्वेक्षण की कई मांगें अदालतों तक पहुंची हैं हालांकि भागवत ने अपने व्याख्यान में किसी का नाम नहीं लिया. उन्होंने पुणे में सहजीवन व्याख्यानमाला में ‘भारत-विश्वगुरु’ विषय पर गुरुवार को व्याख्यान दिया, जिसमें उन्होंने समावेशी समाज की वकालत की और कहा कि दुनिया को यह दिखाने की जरूरत है कि देश सद्भावना के साथ एक साथ रह सकता है.
भागवत का ये बयान ऐसे वक्त पर आया है जब मंदिर-मस्जिदों को लेकर नए विवादों का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है. दरअसल मामला 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट यानी पूजा स्थल कानून को लेकर है. इसके विरोध में दाखिल याचिकाएं कहती हैं कि यह कानून हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन समुदाय को अपने उन पवित्र स्थलों पर दावा करने से रोकता है, जिनकी जगह पर जबरन मस्ज़िद, दरगाह या चर्च बना दिए गए थे. न्याय पाने के लिए कोर्ट आने के अधिकार से वंचित करना मौलिक अधिकार का हनन है. वहीं जमीयत उलेमा की याचिका इस कानून को बनाए रखने के पक्ष में है. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर एक महीने के भीतर जवाब देने को कहा है.
इस कानून के मुताबिक देश में धार्मिक स्थलों में वही स्थिति बनाई रखी जाए जो आजादी के दिन यानी 15 अगस्त 1947 को थी. उसमें बदलाव नहीं किया जा सकता. इसका आशय ये है कि कोई भी व्यक्ति धार्मिक स्थलों में किसी भी तरह का ढांचागत बदलाव नहीं कर सकता. यानी आजादी से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी अन्य पूजा स्थल के रूप में नहीं बदला जा सकता.
इसके साथ ही एक्ट में ये भी प्रावधान किया गया कि 15 अगस्त 1947 में मौजूद किसी धार्मिक स्थल में बदलाव के विषय में यदि कोई याचिका कोर्ट में पेंडिंग है तो उसे बंद कर दिया जाएगा. इस कानून से अयोध्या विवाद को दूर रखा गया था. इसको लेकर ये तर्क दिया गया था कि अयोध्या का मामला अंग्रेजों के समय से कोर्ट में था. इसलिए 1991 का कानून अयोध्या विवाद पर लागू नहीं हुआ.
मोहन भागवत ने क्या कहा? मोहन भागवत ने कई मंदिर-मस्जिद विवादों के फिर से उठने पर चिंता व्यक्त की और कहा कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोगों को ऐसा लग रहा है कि वे ऐसे मुद्दों को उठाकर ‘‘हिंदुओं के नेता’’ बन सकते हैं. भारतीय समाज की बहुलता को रेखांकित करते हुए भागवत ने कहा कि रामकृष्ण मिशन में क्रिसमस मनाया जाता है. उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘केवल हम ही ऐसा कर सकते हैं क्योंकि हम हिंदू हैं.’’
उन्होंने कहा, ‘‘हम लंबे समय से सद्भावना से रह रहे हैं. अगर हम दुनिया को यह सद्भावना प्रदान करना चाहते हैं, तो हमें इसका एक मॉडल बनाने की जरूरत है. राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोगों को लगता है कि वे नयी जगहों पर इसी तरह के मुद्दों को उठाकर हिंदुओं के नेता बन सकते हैं. यह स्वीकार्य नहीं है.’’
भागवत ने कहा कि राम मंदिर का निर्माण इसलिए किया गया क्योंकि यह सभी हिंदुओं की आस्था का विषय था. उन्होंने किसी विशेष स्थल का उल्लेख किए बिना कहा, ‘‘हर दिन एक नया मामला (विवाद) उठाया जा रहा है. इसकी अनुमति कैसे दी जा सकती है? यह जारी नहीं रह सकता. भारत को यह दिखाने की जरूरत है कि हम एक साथ रह सकते हैं.’’
उन्होंने कहा कि बाहर से आए कुछ समूह अपने साथ कट्टरता लेकर आए और वे चाहते हैं कि उनका पुराना शासन वापस आ जाए. उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन अब देश संविधान के अनुसार चलता है. इस व्यवस्था में लोग अपने प्रतिनिधि चुनते हैं, जो सरकार चलाते हैं. आधिपत्य के दिन चले गए.’’
उन्होंने कहा कि मुगल बादशाह औरंगजेब का शासन भी इसी तरह की कट्टरता के लिए जाना जाता था, हालांकि उसके वंशज बहादुर शाह जफर ने 1857 में गोहत्या पर प्रतिबंध लगा दिया था. उन्होंने कहा, ‘‘यह तय हुआ था कि अयोध्या में राम मंदिर हिंदुओं को दिया जाना चाहिए लेकिन अंग्रेजों को इसकी भनक लग गई और उन्होंने दोनों समुदायों के बीच दरार पैदा कर दी. तब से, अलगाववाद की भावना अस्तित्व में आई. परिणामस्वरूप, पाकिस्तान अस्तित्व में आया.’’
भागवत ने कहा कि अगर सभी खुद को भारतीय मानते हैं तो ‘‘वर्चस्व की भाषा’’ का इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है. आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘‘कौन अल्पसंख्यक है और कौन बहुसंख्यक? यहां सभी समान हैं. इस देश की परंपरा है कि सभी अपनी-अपनी पूजा पद्धति का पालन कर सकते हैं. आवश्यकता केवल सद्भावना से रहने और नियमों एवं कानूनों का पालन करने की है.’’
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